पाण्डवों ने एक लड़ी थी, हम रोज़ लड़ रहे हैं ,
अपने हिस्से का महाभारत हम रोज़ लड़ रहे हैं ।
यिधिष्ठिर ने दिये यक्ष के प्रश्नों का उत्तर,
जीवन के प्रश्नों का उत्तर हम रोज़ दे रहे हैं ।
संजय ने सुनाया था धृतराष्ट्र को विध्वंश का आँखों देखा हाल,
हर शाम प्राइम टाइम में हम देश की खबरें देख रहे हैं ।
कर्ण ने अपने कुंडल और कवच एक बार दान में दिया था,
आहुति अपने सपनों की हम रोज़ दिये जा रहे हैं।
अर्जुन जैसे महाज्ञानी के लिए भी धर्म – अधर्म परिभाषित करना मुश्किल था ,
बड़ी सहजता से ये ज़िम्मेदारी हमारे सर रोज़ मढ़ी जा रही है ।
हे माधव, हे केशव, कहाँ हो तुम,
कलियुग के तत्कालीन प्रसंग में गीता का ज्ञान हमें फिर से सुना जा।
आज भी द्वापर वाली गीता पढ़, अटकले लगाये जा रहे हैं,
धर्म और अधर्म को हम अपनी सहूलियत से परिभाषित किए जा रहे हैं।
हे माधव, हे केशव, कहाँ हो तुम ?
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